विजय के बाद
क्षितिज के पार से है आ रहा संदेश कोई|
कि जैसे हो धरा पर आ रहा परिवेश कोई|
उतर जगती पे स्वर्णिम काल करना चहता है,
करूँ सहयोग उसका ला रहा आदेश कोई||
छिपा आदेश में ही मुक्ति निज का मार्ग भी है|
जगत के वास्ते उसमें छिपा सन्मार्ग भी है|
विजय के बाद की दुनिया लुभाती है अभी से,
दिशा देने को माधव का बताया मार्ग भी है||
नहीं मैं कह रहा हर व्यक्ति पूरण संत होगा|
मगर यह है सुनिश्चित दीनता का अंत होगा|
नहीं देवत्व की अनुभूति की आकांक्षा है,
भरा गुणधर्म मानव का मगर अत्यंत होगा||
वहाँ हर व्यक्ति को व्यक्तित्व निज का बोध होगा|
हृदय के बीच में कोई नहीं अवरोध होगा|
बढ़ें किस भांति मानव और मानवता जगत में,
वहाँ इस बात पर भी निरंतर शोध होगा ||
वही परिवेश जिसमें भूख खुद रोटी कमा लेगी|
हृदय में मान मर्यादा भी निज डेरा जमा लेगी|
निज धर्म ही हर कर्म का आधार होगा जब,
हँसेगी भारती माँ और निज गौरव सम्भालेगी||
वही परिवेश निर्मल प्रेम का आवास है जो|
प्रशस्तित ज्ञान पथ के कर्म का विश्वास है जो|
सभी योद्धा समर में पक्ष निज से लड़ रहे हैं,
विजय पर ही मिलेगी आत्मा की प्यास है जो||
बहुत अच्छा👍
जवाब देंहटाएं🙏
हटाएंSuperb ��
जवाब देंहटाएंThank you 🙏
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