विजय के बाद

 


क्षितिज के पार से है आ रहा संदेश कोई|

कि जैसे हो धरा पर आ रहा परिवेश कोई|

उतर जगती पे स्वर्णिम काल करना चहता है, 

करूँ सहयोग उसका ला रहा आदेश कोई||

                         छिपा आदेश में ही मुक्ति निज का मार्ग भी है|

                        जगत के वास्ते उसमें छिपा सन्मार्ग भी है|

                        विजय के बाद की दुनिया लुभाती है अभी से, 

                         दिशा देने को माधव का बताया मार्ग भी है||

नहीं मैं कह रहा हर व्यक्ति पूरण संत होगा|

मगर यह है सुनिश्चित दीनता का अंत होगा|

नहीं देवत्व की अनुभूति की आकांक्षा है, 

भरा गुणधर्म मानव का मगर अत्यंत होगा||

                     वहाँ हर व्यक्ति को व्यक्तित्व निज का बोध होगा|

                      हृदय के बीच में कोई नहीं अवरोध होगा|

                      बढ़ें किस भांति मानव और मानवता जगत में, 

                       वहाँ इस बात पर भी निरंतर शोध होगा ||

  वही परिवेश जिसमें भूख खुद रोटी कमा लेगी|

   हृदय में मान मर्यादा भी निज डेरा जमा लेगी|

    निज धर्म ही हर कर्म का आधार होगा जब, 

  हँसेगी भारती माँ और निज गौरव सम्भालेगी||

                          वही परिवेश निर्मल प्रेम का आवास है जो|

                         प्रशस्तित ज्ञान पथ के कर्म का विश्वास है जो|

                         सभी योद्धा समर में पक्ष निज से लड़ रहे हैं, 

                        विजय पर ही मिलेगी आत्मा की प्यास है जो||

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