पढ़ाई प्रेम की
बिन कहें विचारों कि ऐसी घटा छाई है।
मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।।
सुना था कि तीन पग में,तीन लोक बाधे थे
पर जिसने लोक बाधे,वो प्रेम बस अढाई है
जिसने राज्य त्यागें, कर्तव्य रूप धारे थे
प्रेम रूप रघुवर ने,जूठि बेर खाई है
बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है।
मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।।
सत्य जिसमें आता है, झूठ ना समाता है
मन के रोग मारे जो, प्रेम वो दवाई है
वेद जिसको गाते,और शास्त्र भी बताते हैं
मन के मीत कान्हा ने,रीत वो सिखाई है
बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है।
मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।।
जलना जिसमें चाहे मन, रूह जिसकी प्यासी है
कालिकमली वाले ने ,आग वो लगाई है
प्रेमियों ने पाया,जी भर के फिर लुटाया है
कबिरा जिसको जीता, वो प्रेम की लड़ाई है
बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है।
मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।।
विश्वास जिससे बनता,कर्तव्य भी निखरता हैं
फूल जिससे खिलता ,वो प्रेम की कढ़ाई है
भक्ति मुक्ति पाने को,नाम जिसका काफी है
वो महाशक्ति इस जग में,प्रेम बन समाई है
बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है।
मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।।
प्रेम वो पढ़ाई है , जो कभी समझ न आई है...... अच्छा प्रयास
जवाब देंहटाएंइसीलिए शास्त्रों में गोतीत कहा गया है🙏
हटाएंNice poem
जवाब देंहटाएंThank you😊
हटाएंLallantop 👍
जवाब देंहटाएंशुक्रिया🙏
हटाएं