मित्रता

 

मित्रता !

एक अपूर्ण भावना, अतृप्त शब्द

जिसकी तृप्ति को,

शब्द भी पड़ जाते नि:शब्द

क्या करें,

शब्दों की अपनी सीमाएं हैं

उनकी,

कुछ भौतिक मर्यादाएं हैं

जिसे,

वे लांघ नहीं सकते

मजबूर हैं,

माफी भी मांग नहीं सकते।।

मित्रता !

हर दिल की प्यास है

कुछ ,

अच्छा होने की आस है

किसी ने कहा,

क्या ये जरुरी है

बताऊं क्या,

यह तो मजबूरी है

क्या कहूं,

अनकहा ज़िक्र है

एहसास ही,

कर देता बेफिक्र है।।

मित्रता!

नहीं मालूम कब होती है

नहीं पता,

कैसे और क्यों होती है

ना जाने, 

ये कौन सी हवा है

सच कहूं,

 हर मर्ज की दवा है

मित्रों संग,

खंडहर भी ताजमहल होता है

साथ का,

लाजवाब हर पल होता है।।

मित्रता!

एक विचार होता है

सच्ची हो,

तो सदाचार होता है

और झूठ की,

संभावना ही नहीं

सच्ची नहीं,

तो जानों मित्रता ही नहीं

कांधे पर,

जो उसका हाथ हो

फर्क नहीं पड़ता,

ग़म कितने साथ हों।।




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