छोटे सम्राट
मित्रों यह सम्राट कहानी की अगली कड़ी है , जो आप में से ही कुछ मित्रों की माँग वो सलाह से प्रेरित है । आप ने पिछले भाग में सम्राट और उसके अतिमहत्वाकांक्षी दुर्बुद्धि का परिणाम देखा , परन्तु अब भी बहुत कुछ शेष था।
सम्राट का शावक, जिसे जानवर छोटा सम्राट कहते थे परन्तु प्यार से नहीं डर तथा नफरत से। जंगल लगभग बरबाद हो चुका था, परन्तु शावक के जीवन का लम्बा सफर अब भी शेष था। जिसे जीने के बहुत से तरीके थे जैसे- हाल पर जिंदा रहना, परिस्थितियों को दोष देना या फिर सम्राट को कोसना। ये सब आसान प्रतीत होते हैं परन्तु शावक को घुट घुट कर जीना स्वीकार नहीं था, पर करे तो क्या? सिंह की संतान को आत्महत्या भी तो शोभा नहीं देता।
शावक कुछ दिनों तक भूखे रहने के बाद दूसरे जंगल का रुख करता है, परन्तु सदा के लिए नहीं अपितु पेट भरने के लिए , शिकार तो आवश्यक था जीवन के लिए परन्तु अब जंगल का संकट देखते हुए शिकार कहीं और से करने की सोची, ये क्रम दो- चार दिन चलता रहा फिर अचानक एक दिन उसने एक भूख से पीड़ित बंदर देखा,जो बूढ़ा होने की वजह से चल भी नहीं सकता था।शावक बंदर के पास गया,उसे आते देख बंदर को लगा कि आज वह जीवन से मुक्त हो गया, परन्तु यह क्या? शावक बड़े प्यार से पूछता है,काका! आप इतने असहाय क्यों हैं?
बंदर ( गुस्से में) - तुम्हारे बाप की ही देन है, उसने मेरा परिवार भी नष्ट कर दिया और जंगल भी, अब बुढ़ापे में अपना पेट कैसे भरूं? शावक- क्या मैं इसमें आप की कोई मदद कर सकता हूँ? बंदर- हाँ! मुझे मार कर खा लो, तुम्हारा पेट भी भर जायेगा और मेरे संकट का भी समाधान हो जाएगा। शावक- नाराज मत होइए मेरे पिता की गलतियों में मेरा कोई वश नहीं और जंगल नष्ट होने से यहाँ फल ढूंढना भी अत्यंत कठिन है परन्तु थोड़ी दूर पर एक हरा भरा वन है वहाँ जमीन पर भी बहुत फल पड़े रहते हैं, आप चाहें तो मैं आपको वहाँ ले कर चल सकता हूँ बंदर विश्वास करने को तैयार नहीं था, परन्तु उसके पास और कोई विकल्प भी नहीं था।
एक तरफ शावक की आँख में कुछ बेहतर होने की उम्मीद थी तो दूसरी तरफ बंदर की विवशता, परन्तु इसके साथ ही कुछ और मिलने जा रहा था जो भविष्य के गर्भ में था- शावक का युवा जोश, कुछ कर गुजरने का इरादा तथा बंदर का ज्ञान और अनुभव।
शावक अपने पीठ पर बंदर को बैठा कर चल दिया। पूरे जंगल में आश्चर्य का का वातावरण था, अब तक किसी ने भी सिंह पर बंदर की सवारी नहीं देखी थी,नयी उम्मीद हृदय में हिलोरें लेने को तैयार थी परंतु सम्राट की करनी बाधा बनकर रोक रही थी, जानवरों को लगा छोटा सम्राट कोई ढोंग कर रहा है। उन्हें शावक के पवित्र इरादों में भी षणयंत्र की बू आ रही थीं और शावक को भी पता था कि यह रास्ता इतना आसान नहीं है, वर्षों का छलावा उसपर विश्वास न करने देगा।
वापस आते समय बंदर ने कहा- बेटा आज तुमने मेरी हफ्तों की भूख मिटा दी परन्तु कल से तो फिर वही होगा। शावक- जी नहीं आप चाहें तो रोज इसी तरह मेरे साथ आ सकतें परंतु................ बंदर- परंतु क्या बेटा और ये तुम्हारी आँख में आँशू कैसे? शावक- हम कब तक दूसरे जंगल पर निर्भर रहेंगे,क्या हमारा जंगल कभी हमारा पेट नहीं भर पायेगा? बंदर- बेटा! ये सब सम्राट की नीतियों का ही नतीजा है परंतु तुम्हारे बाबा बब्बर शेर के समय में यह जंगल अत्यंत सम्पन्न और कोलाहलपूर्ण था, मैं उसका महामंत्री था सब तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ थी। शावक- पिता जी की गलतियों के लिए क्षमा करें और पुननिर्माण का उपाय सुझाए महामंत्री जी! बंदर- बेटा! न तो तुम बब्बर शेर हो और अब न ही मैं महामंत्री, यह सब बहुत कठिन होगा शावक- कठिन तो है परन्तु घुट घुट कर मरने से ज्यादा नहीं, आप उपाय सुझाए........ बंदर खुश हुआ और उसने खुशी-खुशी महामंत्री और सलाहकार बनने का निर्णय किया, युवा सिंह के लिए किसी किला फतह करने से कम नहीं था।
बूढ़े महामंत्री की सलाह पर युवा सिंह ने सब कुछ नये तरीके से करने की सोची, उसने आदेश दिया कि अब जंगल वैसे ही उपभोग वह राज्य करने के योग्य नहीं रहा, इसलिए मंत्रीमंडल के कार्यों में परिवर्तन किया जायेगा। उसने पिता की गीदड़ मंडली को दूसरे जंगल से भोजन प्रबंध करने का आदेश दिया, परन्तु शर्त थी कि संबंध ख़राब होने की दशा में दोषी को मृत्यु दण्ड मिलेगा। यह सुनकर मंत्रीमंडल के तेवर बागी हो ग्रे, कुछ ने तो शावक को राजा मानने से भी इंकार कर दिया, फलस्वरूप काल के गाल में चलें गये जिससे बाकी को एक दिन का आराम मिल गया।
इस घटना से लोगों को विश्वास होनें लगा था परंतु डर तो हावी था ही। शावक ने खुद को बंदर का संरक्षक भी नियुक्त किया क्योंकि उसे बंदर पर गीदड़ों घात की आशंका थी। बंदर ने अपने पुराने साथियों को इकठ्ठा किया,सब ने मिलकर नये योग्य मंत्रीमंडल का निर्माण किया और उनको प्रशिक्षण भी दिया। अब जंगली जानवरों के नफरत का कारण बनें रहने वाला छोटा सम्राट, उनके बीच छोटे सम्राट नाम से सम्मान पा रहा रहा था। शावक का प्यार देखकर डर कम होता जा रहा था और ऊर्जावान मंत्रीमंडल वन को सुरम्य बना रहा था।
रही सही कसर बूढ़े बंदर की मृत्यु ने पूरा कर दिया। उसमें सभी शोक से एकत्रित हुए, सबको इकठ्ठा देखकर छोटे सम्राट ने घोषणा की कि अब किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है राज्य अब बाबा बब्बर शेर के नियमों पर ही चलेगा, जंगलवासी उसपर भरोसा कर सकते हैं। इस बार कुछ नया था कि वे भरोसा कर रहे थे
अपनी संतानों को कहानी सुनाने हुए छोटे सम्राट ने बताया कि कर्त्तव्य इश्वर का स्वरूप है और प्रेम उसकी आत्मा जिसे पूजने पर कुछ भी असम्भव नहीं रहता।
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