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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छोटे सम्राट

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  मित्रों यह सम्राट कहानी की अगली कड़ी है , जो  आप में से ही कुछ मित्रों की माँग वो सलाह से प्रेरित है । आप ने पिछले भाग में सम्राट और उसके अतिमहत्वाकांक्षी दुर्बुद्धि का परिणाम देखा , परन्तु अब भी बहुत कुछ शेष था।                                 सम्राट का शावक, जिसे जानवर छोटा सम्राट कहते थे परन्तु  प्यार से नहीं डर तथा नफरत से। जंगल लगभग बरबाद हो चुका था, परन्तु शावक के जीवन का लम्बा सफर अब भी शेष था। जिसे जीने के बहुत से तरीके थे जैसे- हाल पर जिंदा रहना, परिस्थितियों को दोष देना या फिर सम्राट को कोसना। ये सब आसान प्रतीत होते हैं परन्तु शावक को घुट घुट कर जीना स्वीकार नहीं था, पर करे तो क्या? सिंह की संतान को आत्महत्या भी तो शोभा नहीं देता।                               शावक कुछ दिनों तक भूखे रहने के बाद दूसरे जंगल का रुख करता है, परन्तु सदा के लिए नहीं अपितु पेट भरने के लिए , शिकार तो आवश्यक था जीवन के लिए परन्तु अब ...

कृष्ण और कामना

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कृष्ण को चाह है यूं तो बृजधाम की। द्वारिका सत्य है किंतु घनश्याम की।। धार यमुना की मन में ही बहती रहे गोते सागर की लहरों में लेना ही है जिंदगी चलती है अपने ही ढंग से वो तो होता ही है जिसको होना ही है पीर पर भारी मुस्कान है श्याम की। कृष्ण को चाह है यूं तो बृजधाम की।। यूं तो दुनिया ही पलकें बिछाए मिली एक राधा ही मन को लुभाती उन्हें उनका जीवन अधूरी कहानी रहा दुनिया अवतार पूरा बताती उन्हें कृष्ण गाथा समर्पण की बलिदान की। कृष्ण को चाह है यूं तो बृजधाम की।। थाम  वंशी  बनें  प्रेम  के  देवता शांति का ले निवेदन तो जाना ही है नीति मजबूरियों की गुलामी नहीं शांति को युद्ध भारी रचाना ही है कृष्ण  का अर्थ  है  कर्म  निष्काम  ही । कृष्ण को चाह है यूं तो बृजधाम की।।   जो समय ने कहा पूरे मन से किया ये भी मालूम है सारा खो जायेगा द्वारिका स्वर्णनगरी प्रभु ने किया है पता कि ये सागर का हो जायेगा कृष्ण ही सार है श्रृष्टि अविराम की| कृष्ण को चाह है यूं तो बृजधाम की।।