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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वेदना भारत माँ की

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रात सपनों में मिली वो, द्रवित होकर रो रही थी। देख ले आँसू न कोई, इसलिए मुंह धो रही थी।। थी छिपाती दर्द अपने, पर न छिपती अश्रुधारा। लग रहा कि उसे अपनों, ने किया था बेसहारा।।                              देखकर उसको लगा कि, दर्द कुछ उसके बंटा लूं।                              लग रहा अपना है कोई, हाल का उसके पता लूं।।                              पास जब उसके गया तो, वो जरा सी मुस्कुराई ।                              उसने मेरा कुशल पूछा, पर जुबां थी लड़खड़ाई।। कहा माता मैं सुखी हूँ,पर व्यथा अपनी सुनाओ । तेज मुखमंडल सुशोभित, माँ पता अपना बताओ।। व्यंगमय थी हँसी उसकी, जब कहा क्या नहीं जाना। मैं वहीं भारत हूँ जिसको, तुमने अपना देश माना ।।                   ...

मित्रता

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  मित्रता ! एक अपूर्ण भावना, अतृप्त शब्द जिसकी तृप्ति को, शब्द भी पड़ जाते नि:शब्द क्या करें, शब्दों की अपनी सीमाएं हैं उनकी, कुछ भौतिक मर्यादाएं हैं जिसे, वे लांघ नहीं सकते मजबूर हैं, माफी भी मांग नहीं सकते।। मित्रता ! हर दिल की प्यास है कुछ , अच्छा होने की आस है किसी ने कहा, क्या ये जरुरी है बताऊं क्या, यह तो मजबूरी है क्या कहूं, अनकहा ज़िक्र है एहसास ही, कर देता बेफिक्र है।। मित्रता! नहीं मालूम कब होती है नहीं पता, कैसे और क्यों होती है ना जाने,  ये कौन सी हवा है सच कहूं,  हर मर्ज की दवा है मित्रों संग, खंडहर भी ताजमहल होता है साथ का, लाजवाब हर पल होता है।। मित्रता! एक विचार होता है सच्ची हो, तो सदाचार होता है और झूठ की, संभावना ही नहीं सच्ची नहीं, तो जानों मित्रता ही नहीं कांधे पर, जो उसका हाथ हो फर्क नहीं पड़ता, ग़म कितने साथ हों।।

स्वामी विवेकानन्द

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जड़ अविवेक की काट राम ने, बीज विवेक का बोया था जड़ता में घनघोर निशा की, आर्यवर्त यह सोया था दुनिया करती गर्व नरेंदर,आग लगाता पानी में देख के बंधन निज माँ के, वह अंतर्मन से रोया था ।।१।। उठो जगो कर्त्तव्य में रत हो, रुको नहीं बिन लक्ष्य लिए  चलो गिरो उठकर फिर दौड़ो नयनों में आदर्श लिए संघर्षों के बिना है कुछ भी मानवता को मिला नहीं मानव हो जानें से क्या गर ,पशुवत ही उपभोग किये ।।२।। सभी मरें या सभी बचेंगे , दो विकल्प बस दुनिया में आदर्शों का किला ढ़हा तो , सभी दबेंगे दुनिया में व्यक्ति व्यक्ति से अलग हुआ तो, फिर होगा व्यक्तित्व नहीं खुद से घर मिलना चाहो तो, मिलों परस्पर दुनिया में ।।३।।

प्रेम बच्चों सा

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  बच्चे दिल सा  लिखते और मिटा देते हैं। इशारों में प्यार करना वो सिखा देते हैं।। अपने आसन से हिलकर देखो तो दिल से मिलकर नन्हें फूलों सा खिलकर फटते बचपन को सिलकर हमको हमसे पल-भर में  मिला देते हैं। इशारों में प्यार करना वो सिखा देते हैं।। जो चाहे रहता होकर जब चाहें बनते जोकर लगती पाँवों में ठोकर फिर हँसदेते हैं रोकर बिछड़ते  हैं  जब तो रुला देते हैं। इशारों में प्यार करना वो सिखा देते हैं।। कुछ सच्ची वाली कसमें कुछ झूठे वाले वादे बस कच्ची सी उम्मीदें और पक्के जैसे इरादे सपनों वाली आँखे फिर दिला देते हैं। इशारों में प्यार करना वो सिखा देते हैं।।