वेदना भारत माँ की

रात सपनों में मिली वो, द्रवित होकर रो रही थी। देख ले आँसू न कोई, इसलिए मुंह धो रही थी।। थी छिपाती दर्द अपने, पर न छिपती अश्रुधारा। लग रहा कि उसे अपनों, ने किया था बेसहारा।। देखकर उसको लगा कि, दर्द कुछ उसके बंटा लूं। लग रहा अपना है कोई, हाल का उसके पता लूं।। पास जब उसके गया तो, वो जरा सी मुस्कुराई । उसने मेरा कुशल पूछा, पर जुबां थी लड़खड़ाई।। कहा माता मैं सुखी हूँ,पर व्यथा अपनी सुनाओ । तेज मुखमंडल सुशोभित, माँ पता अपना बताओ।। व्यंगमय थी हँसी उसकी, जब कहा क्या नहीं जाना। मैं वहीं भारत हूँ जिसको, तुमने अपना देश माना ।। ...