संदेश

अवध संदेश

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  अयोध्या मान फिर से पा रही है अपने भाग्य पर इठला रही है बनें संदेशवाहक धर्मयुग का बस यही सोच कर खिल जा रही है                                            युगों ने शौर्य का है गीत गाया                                            जगतपति  राम को मैंने है जाया                                            धर्मध्वज को सदा ऊंचा किया है                                            सत्यपथ पर सदा चलना सिखाया दर्द भ्रम के बहुत मैंने जियें हैं प्रायश्चित कर्म बच्चों के किये हैं फलित सत्कर्म फिर से हो रहें हैं इसी उम्मीद में अब तक जियें हैं       ...

शरद पूर्णिमा

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शरद पूर्णिमा पूर्णकाम तिथि, मंगलमय मनभावन। ऊर्जा का रोमांच लिए तन, मन भी होता पावन।। संपूर्ण कला परिपूर्ण चंद्रमा अमृत रस बरसायें महारास के गीत कन्हैया नाना भांति सुनायें कर्म योग का रोग लगाने,नाच रहे जगपावन। ऊर्जा का रोमांच लिए तन, मन भी होता पावन।। खग की पीड़ा असह्य जिन्हें है यह दुनिया बतलाती आदि कवि की हृदय वेदना रामायण रच जाती कोटी कोटी वंदन है, जिनकी कविता पाप नसावन। ऊर्जा का रोमांच लिए तन, मन भी होता पावन।। जिनकी रचना में ढलने को स्वयं राम जी आते वन वन भटक रहे मायापति प्रेम योग सिखलाते ज्ञान रुप बन महाकवि हुए तीनों ताप नसावन। ऊर्जा का रोमांच लिए तन, मन भी होता पावन।। माता मीरा की भक्ति का कोई जोड़ नहीं है एक बार लग जाए जिसे फिर कोई तोड़ नहीं है कृष्ण भक्ति से भिगो दिया मन,बनके भादों सावन । ऊर्जा का रोमांच लिए तन, मन भी होता पावन।।

🙏भोले महाकाल 🙏

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महाकाल हैं भोले भाले कब तलक। शीश पर आशीष चाहो तब तलक।। शीश जब उठने लगें उन्मत्त होकर, पांव जब बढ़ने लगें उद्दंड होकर, दण्ड ही जब एकमात्र विकल्प हो आषुतोष मिलें रुद्र प्रचण्ड होकर वीरभद्र की भद्रता है कब तलक। शीश पर आशीष चाहो तब तलक।। हर ,भरे मद से स्वरों को डांटते हैं  उठ रहा जो शीश शंकर काटते हैं, तब कहीं भोले विरागे बैठते हैं, या भयंकर नृत्य तांडव नाचते हैं रूप अभयंकर भयंकर कब तलक। शीश पर आशीष चाहो तब तलक।।

🌼जानकी स्तुति 🌼

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  जय जनक नंदिनी जानकी माँ, जय जय रघुवर की प्राणशक्ति जय भूमिसुता जय जगजननी, जय महामाया जय महाशक्ति आदर्श कल्पनाएँ हारी , तेरे जीवन दर्शन से माँ सारी भव बाधाएं मिटती, पल में तेरे दर्शन से माँ आनंद कंद हैं सुख राशि , श्रीराम महाप्रभु जगदीश्वर          वो भी तेरे गुणगान करें , जो जगती के हैं परमेश्वर      ||1|| हनुमंत संत हितकारी भी,सेवक बनकर हर्षित होते तेरे चरणों की सेवा में,ऋषि मुनिगण आकर्षित होते तुम ही तो भारत माता हो, हे सिंहवाहिनी जगदम्बा तुम दुर्गा काली मनोरमा,तुम ही हो सरस्वती अम्बा तुम से इच्छाएं पूरित हों, तुम में ही है माँ निहित मुक्ति            माँ साध्य साधना सब तुम, तुम्हारे ही एक स्वरुप भक्ति     ||2||    

लालसा नवमी की

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  अब तो मन की यही कामना,मुझमें राम जन्म हो जाये। शक्ति का पूजन हो पूरा, जीवन में नवमी आ जाये।।१।। जय जय जय जगदम्ब भवानी,  बेटे  की  बस  यही  कहानी। उनसे  ही  माँ  योग करा दे, जीवन  हो  जाये  नूरानी। ऐसी कृपा करो हे माता,राम राज्य हिरदय हो जाये। शक्ति का पूजन हो पूरा, जीवन में नवमी आ जाये।।२।। ईर्ष्या घृणा से दूर रहें माँ, मन से ना मजबूर रहें माँ। सियाराम आँखों में बसे हों, इसी नशे में चूर रहें माँ। रघुवीर धीर गम्भीर प्रभु,इन नयनों के जल में नहायें। शक्ति का पूजन हो पूरा, जीवन में नवमी आ जाये।।३।। हममें फूट पड़ी है माता, विपदा टूट पड़ी है माता। खुद का ही दुश्मन बन बैठे, ऐसी लूट पड़ी है माता। नर-बानर का योग कराया,हमको वो विद्या बतलाये। शक्ति का पूजन हो पूरा, जीवन में नवमी आ जाये।।४।। इतना प्रेम भरो हे माई, जिससे हमें मिले रघुराई। प्रेम छाँछ पीने से मइया, मिले नाचते कृष्ण कन्हाइ। ये इक्षा ढृण इतनी कर दो,रघुवर भी मोहित हो जाये। शक्ति का पूजन हो पूरा, जीवन में नवमी आ जाये।।५।।

भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  ये नया वर्ष अपने संग में, एक नया सवेरा लाया है। राम जन्म अग्रिम सूचना,जन जन तक पहुंचाया है।। १।। शक्ति पूजा की ऊर्जा से, भरी हुई हैं दसों दिशाएँ।  मानव मन उल्लसित हैं,भरी हुई हैं नव आशाएँ।  पकी बालियों से चेहरे पर,नया सवेरा आया है।  ये नया वर्ष अपने संग में, एक नया सवेरा लाया है।। २।।  वृक्षों की हैं लदी डालियाँ,नव पल्लव अरु नव फल से।  खुशियों की आशाएँ जागी, हैं आने वाले कल से।  मंगलमय हो नया वर्ष,मन का संदेश पठाया है।  ये नया वर्ष अपने संग में, एक नया सवेरा लाया है।।३।।

🕊️मलीन बस्ती🕊️

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शहर से गुजरते हुए, देखा मलीन बस्ती। चकाचौंध से शहर में डूबी हुई थी कश्ती ।। राजमहल के बगल में, खड़े हासिये के लोग  जैसे चने चबने के संग,रक्खे छप्पन भोग  हाँ चिंतित महलों के आगे, मैले बच्चों की मुस्काई  देख न्याय विधना के यारो, मेरी आँखें भर आयी  ये महंगे को ले रोते, वो सस्ते पर हँसती। चकाचौंध से शहर में, डूबी हुई थी कश्ती।। मत इतराओ महलों वाले, उसके संग में भी अविनाशी  खुशियाँ लूट लूट तुम हारे,पर उसकी ना दिखी उदासी  इनका भी कुछ ख्याल करो,रौब करो कम अपने बल पर  सत्ताधीश बनाने वाला, भडक ना जाये तेरे छल पर  किरदारों में उलझ कर,भूल गए जो हस्ती।  चकाचौंध से शहर में, डूबी हुई थी कश्ती।