अवध संदेश

अयोध्या मान फिर से पा रही है अपने भाग्य पर इठला रही है बनें संदेशवाहक धर्मयुग का बस यही सोच कर खिल जा रही है युगों ने शौर्य का है गीत गाया जगतपति राम को मैंने है जाया धर्मध्वज को सदा ऊंचा किया है सत्यपथ पर सदा चलना सिखाया दर्द भ्रम के बहुत मैंने जियें हैं प्रायश्चित कर्म बच्चों के किये हैं फलित सत्कर्म फिर से हो रहें हैं इसी उम्मीद में अब तक जियें हैं ...