संदेश

सितंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

🙏भोले महाकाल 🙏

चित्र
महाकाल हैं भोले भाले कब तलक। शीश पर आशीष चाहो तब तलक।। शीश जब उठने लगें उन्मत्त होकर, पांव जब बढ़ने लगें उद्दंड होकर, दण्ड ही जब एकमात्र विकल्प हो आषुतोष मिलें रुद्र प्रचण्ड होकर वीरभद्र की भद्रता है कब तलक। शीश पर आशीष चाहो तब तलक।। हर ,भरे मद से स्वरों को डांटते हैं  उठ रहा जो शीश शंकर काटते हैं, तब कहीं भोले विरागे बैठते हैं, या भयंकर नृत्य तांडव नाचते हैं रूप अभयंकर भयंकर कब तलक। शीश पर आशीष चाहो तब तलक।।