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आनंद पथ

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  चल चला चल राही तू , इन पथरीली राहों पर। कांटे बन कर बिछे हुए हैं,मंजिल तेरी राहों पर।।१।। गर आसान हुई तो बोलो,क्या मतलब उन बाटों का जिसे देखकर डरे न कोई,क्या मतलब उन कांटों का कुछ पल चलो सम्हलकर साथी,फिसल न जाना आहों पर। कांटे बन कर बिछे हुए हैं , मंजिल तेरी राहों पर।।२।। कुछ पल को गर धीर धरा तो, मीठा दर्द मजा देगा लौट गये पग धरे बिना तो,कुण्ठा तुम्हें सजा देगा जीवन को है अगर समझना,करो भरोसा बाहों पर। कांटे बन कर बिछे हुए हैं,मंजिल तेरी राहों पर।।३।। सम्भव है चीखें भी आयें, फूलों के सपनें बहलायें शायद आकर कलियां बोलें, बहुत हुआ अब ये समझाएं हो कर मौन धरो पग आगे, कान न दो अफवाहों पर। कांटे बन कर बिछे हुए हैं,मंजिल तेरी राहों पर।।४।। मंजिल तो अदृश्य हो रही, आगे धुंधली राह दिखें है जहां पहुंचकर गति थम जाये,उस मंजिल की चाह किसे है पथ आनंद शून्य मत करना, मंजिल की परवाहों पर। कांटे बन कर बिछे हुए हैं,मंजिल तेरी राहों पर।।५।।