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नज़रें

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दिल का क्या है दिल का क्या है वह तो कभी भी भर जाता है और गढ़ता रहता है कुछ नया तुम भी मैं भी और हम दोनों और और कुछ भी नहीं जैसे कुछ हो ही नहीं निकट भविष्य में पर  मैं ग़लत था वहां सब कुछ है बस देखना था तुम्हारी नज़रों को मेरी नज़रों से, तुम्हारी नज़रों में और दिख जाते  हम अढ़ाई  वह... जो होना चाहिए जो होता है सब कुछ शाश्वत है नश्वर हैं तो मेरी नजरें जो देख नहीं पाती तुम्हारी नज़रों में।