विजय के बाद

क्षितिज के पार से है आ रहा संदेश कोई| कि जैसे हो धरा पर आ रहा परिवेश कोई| उतर जगती पे स्वर्णिम काल करना चहता है, करूँ सहयोग उसका ला रहा आदेश कोई|| छिपा आदेश में ही मुक्ति निज का मार्ग भी है| जगत के वास्ते उसमें छिपा सन्मार्ग भी है| विजय के बाद की दुनिया लुभाती है अभी से, दिशा देने को माधव का बताया मार्ग भी है|| नहीं मैं कह रहा हर व्यक्ति पूरण संत होगा| मगर यह है सुनिश्चित दीनता का अंत होगा| नहीं देवत्व की अनुभूति की आकांक्षा है, भरा गुणधर्म मानव का मगर अत्यंत होगा|| वहाँ हर व्यक्ति को व्यक्तित्व निज का बोध होगा| ...