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हे कृष्ण

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हे कृष्ण दया करना हमको,              मंथन की विधि बता दो खुद  को मथ मन माखन करलें,           प्रभु आकर इसे चुरा लो|| प्रभु आप चुरा लो इसको तो,            आनंदित हो क्रीड़ाओं से यदि तुममें ही ये रमा रहे,           तो बच जाये पीड़ाओं से गीता का ज्ञान नहीं मुझको,           फिर भी एक गीत बना लो खुद  को मथ मन माखन करलें,           प्रभु आकर इसे चुरा लो।। तुम मनमोहन कहलाते हो,       मन मोहित करके दिखलाओ ये माया झूठी है या सही,              प्रभु ज्ञान नहीं अब बतलओ  सेवा का धर्म नहीं मालूम,         फिर भी निज दास बना लो खुद  को मथ मन माखन करलें,           प्रभु आकर इसे चुरा लो।। नैनों में अब तो बस जाओ,           नैनों में बात करें हम तुम कानों में वंशी मधुर मधुर,        अधरों...

अंतिम युद्ध

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  महासमर युत जीवन पथ में, यह विजय की सांध्य बेला चाहती विश्राम मुझमें, कर रही मुझको अकेला सूर्य अस्ताचल हुए हैं युद्ध को कुछ पल हुए हैं सामने सब दिख रहा है धर्म क्या,क्या छल हुए हैं सोचता मन किसलिए यह, रक्तरंजित खेल खेला महासमर युत जीवन पथ में, यह विजय की सांध्य बेला पल नहीं अवसाद का है शौर्य पौरुष याद का है क्या यही पल लक्ष्य मेरा हर समर के बाद का है क्या इसी विश्राम को ही, वार आगे बढ़ के झेला महासमर युत जीवन पथ में,यह विजय की सांध्य बेला युद्ध भूमि पाट आया तब विजय का घाट आया कल वही फिर से मिलेगा आज जिसको छाँट आया सोचता क्या सोच आखिर ,युद्ध में खुद को धकेला महासमर युत जीवन पथ में,यह विजय की सांध्य बेला कर्म पथ कब त्यागता हूँ युद्ध से कब भागता हूँ युद्ध जो अंतिम दिखादे बस वही वर माँगता हूँ हर समर के बाद फिर से,एक समर आता नवेला महासमर युत जीवन पथ में, यह विजय की सांध्य बेला आत्ममंथन बल लिया है और उठकर चल दिया है धर्म का कुछ मर्म समझे कर्म पथ सम्बल लिया है जय पराजय काल जाने, हाथ मेरे बस सकेला* महासमर युत जीवन पथ में,यह विजय की सांध्य बेला *सकेला - कोमल और कठोर लोहे के मिश्रण से बनी त...

पढ़ाई प्रेम की

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  बिन कहें विचारों कि ऐसी घटा छाई है। मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।। सुना था कि तीन पग में,तीन लोक बाधे थे पर जिसने लोक बाधे,वो प्रेम बस अढाई है जिसने राज्य त्यागें, कर्तव्य रूप धारे थे प्रेम रूप रघुवर ने,जूठि बेर खाई है  बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है। मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।। सत्य जिसमें आता है, झूठ ना समाता है मन के रोग मारे जो, प्रेम वो दवाई है वेद जिसको गाते,और शास्त्र भी बताते हैं मन के मीत कान्हा ने,रीत वो सिखाई है बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है। मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।। जलना जिसमें चाहे मन, रूह जिसकी प्यासी है कालिकमली वाले ने ,आग वो लगाई है प्रेमियों ने पाया,जी भर के फिर लुटाया है कबिरा जिसको जीता, वो प्रेम की लड़ाई है बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है। मन ही मन में पढ़ लें सब प्रेम वो पढ़ाई है।। विश्वास जिससे बनता,कर्तव्य भी निखरता हैं फूल जिससे खिलता ,वो प्रेम की कढ़ाई है भक्ति मुक्ति पाने को,नाम जिसका काफी है वो महाशक्ति इस जग में,प्रेम बन समाई है बिन कहे विचारों कि ऐसी घटा छाई है। मन ही मन में पढ़ लें सब प...

नेतृत्व सूत्र

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स्वर्णमयी द्वारिका को होना है वृंदावन जिसका गुणगान स्वयं द्वारिकाधीश करते हैं वृंदावन को होना है द्वारिकापुरी जहाँ स्वयं उसके कान्हा रहते हैं और कृष्ण को...  नहीं नहीं उन्हें कुछ नहीं होना है बने रहना है अडिग पाषाण कृष्ण हों राधा हों सीता हों या राम हों क्या फर्क पड़ता है अगर करना है नेतृत्व तो होना होगा शिखर और एकांत में नयनों से बहानी होगी गंगा यमुना जिससे समाज हो सके तृप्त और हो सके सभ्यता का निर्माण  दुनिया बचाने हेतु पीना होगा हलाहल फर्क नहीं पड़ता कि उसे  कंठ में धारण कर  बनते हो नीलकंठ अथवा पीड़ित होगा हृदय में बैठा तुम्हारा प्रिय और अगर उसे पचाने के प्रयास में मर भी गये तो क्या है विष तो पीना ही है दुनिया को बचाने हेतु अन्यथा....  क्या अर्थ है तुम्हारे अवतारों का तुम्हारे जन्म का तुम्हारे होने का तुम भी वही हो जाओगे जो कोसता रहता है खुद को कुछ और होने को नहीं जी पाओगे  अपना मिला हुआ जीवन न ही कर सकोगे नेतृत्व सभ्यता का समाज का  परिवार का न ही स्वयं का

स्वागतम्

 प्रिय मित्रगणों  मैं अखण्डेश ओझा आप सभी का हमारे Blog Aakhyaan (आख्यान) में स्वागत करता हूँ | अब यहाँ पर मैं अपनी रचनाओं के माध्यम से आप लोगो के मध्य उपस्थित रहूँगा| और उम्मीद है कि आप भी हमें अपना स्नेह अवश्य प्रदान करेंगे                                                        - जय हिंद🇮🇳